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कसाब को बाइज्जत पाकिस्तान को सौंप दें!
-सत्येंद्र मिश्र
कसाब को बाइज्जत पाकिस्तान को सौंप दें! -सत्येंद्र मिश्र आप इसे पढ़कर हैरान हो सकते हैं, मुझे पागल और सिरफिरा कह सकते हैं और गालियां भी दे सकते हैं। कुछ तो देशद्रोही कहने से भी नहीं चूकेंगे। फिर भी मैं यह रिस्क ले रहा हूं। मुझे लगता है कि कसाब प्रकरण का इससे बेहतर समाधान नहीं हो सकता कि उसे सम्मान सहित पाकिस्तान को सौंप दिया जाए। इस समय पूरा देश गुस्से में है। हम कसाब के भविष्य को लेकर जिससे भी पूछते हैं, उसका एक ही जवाब होता है, उसे तत्काल फांसी पर लटका दिया जाए। कुछ तो उसके लिए फांसी को भी कम मानते हैं। अजमल कसाब को लेकर देशवासियों में गजब का गुस्सा है। विशेष अदालत ने तो उसे फांसी की सजा दे दी। लेकिन इससे क्या होगा। उसके ऊपर अभी कई अदालतें हैं। मसलन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय आदि। वहां से यह मामला हालफिलहाल निपट जाएगा इसकी उम्मीद नहीं है। मान लीजिए सर्वोच्च न्यायालय भी उसके फांसी की सजा बहाल रखता है। इसके बावजूद इसकी क्या गारंटी है कि उसे फांसी दे ही दी जाएगी। आखिर हम अफजल गुरु को भूल गए न। जब सर्वोच्च न्यायालय ने उसे दी गई फांसी की सजा की पुष्टि की थी तो ऐसे ही हम खुश हुए थे लेकिन क्या हुआ। क्या अफजल को फांसी दे दी गई। आज भी उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के यहां लंबित है। फिर कसाब के साथ यह सब नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है। कल्पना करिए कि 26-11 के हमले में अपने अन्य साथियों के साथ कसाब भी मारा गया होता तब हम अपना गुस्सा किस पर निकालते, किसे लटकाते फांसी पर। क्या कसाब को फांसी पर लटकाते ही आतंकवाद की समस्या का समाधान हो जाएगा। यह सर्वविदित तथ्य है कि भारतीय आतंकवाद पाकिस्तान प्रायोजित है। पाकिस्तान भविष्य में भी 26-11 अथवा उससे बड़े हमले करा सकता है। उससे बचाव की तैयारी तो हमें स्वयं करनी होगी। कसाब को फांसी पर लटकाएं या नहीं इससे पाकिस्तान के इरादों पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। याद करिए शुरू में तो उसने यह मानने से भी इंकार कर दिया था कि कसाब पाकिस्तान का नागरिक है। भारत सबूत पर सबूत दिए जा रहा है लेकिन पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं। आखिर आप एक सोए हुए व्यक्ति को तो नींद से जगा सकते हैं लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा हो, उसे कैसे जगाया जा सकता है। पाकिस्तान की यही हालत है। और उसके आतंकवाद से उसकी भाषा में ही बात करके नहीं निपटा जा सकता। इस संबंध में मैं आपको एक प्रसंग की याद दिलाता हूं। यह कथा मुझे मेरे बाबा जी ने सुनाई थी। तमसा नदी के किनारे एक संत स्नान कर रहे हैं। उनकी नजर पानी में बह रहे एक बिच्छू पर पड़ी। उन्होंने दोनों हथेलियों के बीच जल सहित बिच्छू को उठाया और नदी के किनारे ले जा रहे थे तभी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया। डंक के दंश में बिलबिलाए संत की अजुरी खुल गई और बिच्छू फिर बहने लगा। संत ने उसे फिर अपनी अजुरी में भरा और किनारे की ओर चले लेकिन किनारे तक पहुंच पाते इसके पूर्व बिच्छू ने फिर डंक मार दिया और उनके हाथ से छूटकर वह पानी में बहने लगा। यह प्रक्रिया कई बार चली। नदी के किनारे खड़े एक सज्जन से यह देखा नहीं गया। उन्होंने कहा, अरे! महाराज, बिच्छू का तो स्वभाव ही डंक मारना है। आप उसे बचाने के चक्कर में अपना जीवन खतरे में क्यों डाल रहे हैं? संत ने बड़े ही शांत भाव से उत्तर दिया, बंधु! यह बिच्छू मरने के कगार पर है फिर भी यह अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है, तो मैं जीवन रक्षा का अपना संकल्प भला क्यों छोड़ दूं। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते आज इसी मोड़ पर आ गए हैं। इसका समाधान ‘जैसे के साथ तैसा’ के व्यवहार से नहीं किया जा सकता। और युद्ध, हमला, फांसी आदि तो इसका समाधान है ही नहीं। अगर होता तो देश में न जाने कितने हत्यारे और बलात्कारियों को फांसी की सजा दी जा चुकी। क्या बंद हो गई हत्या, क्या अब बलात्कार नहीं होते। सच तो यह है कि इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। फांसी और हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। यदि होती तो फिलस्तीन और इजराइल की समस्या का कभी समाधान हो गया होता और हम तीसरे विश्वयुद्ध की ओर नहीं बढ़ रहे होते। अच्छाई और बुराई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अच्छे और बुरे लोग हर देश और समाज में हैं। हम अपना ही उदाहरण लें अच्छे लोगों की बहुसंख्या के बावजूद मुट्ठी पर सिरफिरे जगह-जगह दंगा फसाद करते नजर आते हैं। मैं इस संबंध में बरेली का उदाहरण दूं। जहां तक मैंने अनुभव किया है, यह एक शांतिपूर्ण शहर है। यहां के लोग चाहे वह हिंदू हों अथवा मुसलमान सभी अमन पसंद है लेकिन यह शहर चंद सिरफिरों के चलते पिछले दिनों लगभग एक माह कर्फ्यू के अंधेरे में रहा। जनहानि तो नहीं हुई लेकिन भारी आर्थिक क्षति हुई। दंगे के दौरान कुछ लोग एक-दूसरे से जानी दुश्मन की तरह व्यवहार कर रहे थे। एक-दूसरे की संपत्तियों को आग के हवाले किया जा रहा था लेकिन कुछ ही दिनों बाद सभी मिलजुल कर इस शहर को सजाने-संवारने में लग गए हैं। कुछ राजनीतिबाजों को छोड़ दें तो कोई बीते दिनों की बात करना भी पसंद नहीं करता। ऐसे में इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान में भी एक वर्ग ऐसा होगा जो आतंकवाद का विरोधी होगा, भारत से मित्रता का पक्षधर होगा। गाहे -बगाहें हम भारत-पाकिस्तान के एक होने की बात करते हैं। क्या वहां इस तरह की बात करने वाले नहीं होंगे। कसाब की मुक्ति ऐसे लोगों को जहां मजबूत करेगी वहीं हम भी कई तरह के तनावों से मुक्त होंगे। दरअसल कसाब की मुक्ति के साथ ही भारत, पाकिस्तान सहित समूचे विश्व को यह संदेश देने में सफल होगा कि हम आज भी विश्व बंधुत्व की भावना से लवरेज हैं। भारत ही सही मायने में चाहता है, युद्ध नहीं शांति, आतंक नहीं सद्भाव और समृद्धि।
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