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क्या प्यार की कोई हद नहीं होती

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सत्येंद्र मिश्र
गत बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने आनर किलिंग को बर्बर और शर्मनाक करार देते हुए कहा कि ऐसी कुप्रथा को बिना किसी रियायत के जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। शीर्ष अदालत ने दो टूक लहजे में कहा कि जिस जिले में इस तरह के वारदात पर काबू न हो राज्य सरकार वहां के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को फौरन निलंबित कर दे। इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे किसी की असहमति नहीं हो सकती। लेकिन में समझता हूं कि हत्या किसी भी तरह की हो उसका विरोध होना चाहिये। केवल नियम या कानून बना देने से इस तरह की समस्याओं का समाधान होना होता तो समाज से दहेज हत्या, हत्या या इस तरह के तमाम अपराधों का सफाया हो जाता क्योंकि इसे रोकने के लिए एक ओर जहां तमाम कानून हैं वहीं तरह-तरह के जागरूकता अभियान भी चलाये जाते रहते हैं। इसके बावजूद इसमें कोई कमी नहीं आई है। आनर किलिंग यानि इज्जत के नाम पर हत्या को लेकर आजकल देश में बहस छिड़ी हुई है। न्यायपालिका से लेकर संसद तक इस पर चिंता जता चुकी है लेकिन इस मामले में स्थिति ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’ जैसी है। देश में आनर किलिंग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। आए दिन इस तरह की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं। समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार और खुलेपन ने किशोरों-किशोरियों और युवकों-युवतियों को मिलने-जुलने के अवसर बढ़ा दिये हैं। मिलने-जुलने में कुछ बुरा भी नहीं हैं लेकिन हाईस्कूल अथवा इंटर कर रहे किशोर क्या इतने परिपक्व होते हैं कि वे अपने दाम्पत्य जीवन के बारे में कोई ठोस निर्णय लें सकें। इस उम्र का तथाकथित प्यार अथिकांश मामलों में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण के सिवाय कुछ नहीं होता। यद्यपि मेरे एक साहित्यकार मित्र का मानना है कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती न हीं प्यार करने वालों के बीच किसी तरह का बंधन होना चाहिए  लेकिन वे ऐसा कहते समय शायद इस तथ्य को भूल जाते हैं कि किसी भी काम का एक समय होता है। समय पूर्व उठाया गया कोई भी कदम अंतत:  नुकसान ही पहुंचाता है। यही तथ्य हाईस्कूल और इंटर के प्रेमियों पर भी लागू होता है। वे समय से पूर्व कुछ ऐसा कर बैठते हैं जिससे उनके पूरे परिवार शर्मशार होना पड़ता है। इस उम्र में यदि कोई बिन ब्याही बेटी गर्भवती हो जाये या अपने प्रेमी के साथ भाग जाये तो उसके मां-बाप, भाई पर क्या गुजरती है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। आवेग में,  गुस्से में या तथाकथित इज्जत के चक्कर में यदि परिवार कोई अनहोनी कदम उठा लेता है तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ती है। आनर किलिंग का हल्ला मचता है और समाज का के सभी लोग इसकी लानत-मलानत करते हैं। शुरू हो जाता है राजनीतिक नेताओं का दौरा और वह स्थल या गांव कुछ दिन सुर्खियों में रहता है। इसे लेकर बयान देने वालों की बाढ़ सी आ जाती है। समाचार-पत्रों में इप्तों इसे लेकर चर्चा होती है। लेकिन इसी का एक दूसरा पहलू भी है जिसकी चर्चा कहीं नहीं होती। आइये अपको रूबरू कराते हैं सीतापुर में घटी इसी तरह की एक घटना से।  
   उत्तर प्रदेश के एक जिले सीतापुर में 22 फरवरी को एक परिवार के चार सदस्यों ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने वालों में पति, पत्नी और उनकी दो बेटियां शामिल थीं। यह परिवार अपनी बड़ी बेटी के एक युवक के साथ भाग जाने के सदमें को बर्दाश्त नहीं कर सका। सीतापुर निवासी विजय सिंह की पुत्री सरिता 18 मार्च को प्रैक्टिकल की परीक्षा देने के लिए घर से निकली थी तो वापस नही लौटी। देर रात मां-बाप उसका इंतजार करते रहे। पता लगाया तो भनक लगी की बेटी किसी के साथ फरार हो गई। बदनामी के डर से त्रस्त विजय सिंह ने शनिवार की रात ही रेडियल, फेनाल व नुवान का अत्यधिक जहरीला घोल बनाया। फिर विजय, उसकी पत्नी व पुत्रियों ने साथ मिलकर एक सुसाइड नोट लिखा, जिसके बाद सभी  लोगों ने एक साथ उस घोल को पी लिया, जिससे उन सभी की मौत हो गई। चार लोगों के मौत की यह घटना समान्य समाचार बन कर रह गई। किसी राजनेता अथवा न्यायालय ने इसका संज्ञान नहीं लिया, कोई बयान भी सामने नहीं आया। किसी समाज सुधारक ने इस मामले को नहीं उठाया, किसी को न तो घटना का जिम्मेदार माना गया न तो कोई खोजबीन की गई। पुलिस तो इस ओर से इस कदर गाफिल थी कि इस घटना के तीसरे ही दिन चोर विजय के मकान का ताला तोड़ वहां रखा सारा सामान उठा ले गये।
यह थोड़ी बड़ी घटना थी इसलिये एक दिन अखबार में प्रकाशित हो गई। इस तरह के अधकचरे प्रेम प्रसंगों और उससे जनित परिणामों के कारण मैने कई परिवारों को बरबाद होते देखा है जिनकी कहीं चर्चा नहीं होती। आगरा में एक ऐसे परिवार से मिला जो सड़क पर था। मां जैसे-तैसे अपने दो बच्चों का पेट पाल रही थी। मध्यम वर्ग का यह परिवार कभी  खुशहाल हुआ करता था। मां-बाप अपना पेट काटकर अपनी बड़ी बेटी को पढ़ा रहे थे। इंटर की तैयारी कर रही यह बेटी एक दिन अपने प्रेमी के साथ फरार हो गई। उसका बाप यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सका। कुछ दिनों तो वह गुमसुम रहा और एक दिन वह लापता हो गया। उसी की कमाई पर आश्रित उसका पूरा परिवार सड़क पर आ गया। तीन वर्ष पहले गंगोत्री यात्रा के दौरान मेरी एक साधु से मुलाकात हुई थी। सीधे-साधे, भोजपुरी  भाषी होने के कारण उनसे कुछ आत्मीयता सी हुई। दो दिनों यूं ही उनके साथ जंगल में भटकता रहा कि शायद कुछ मिल जायेगा। लेकिन साधु ने जब अपना चोला उतारा तो उसकी सच्चाई का सामना करना मुश्किल था। उनकी 15 साल की बच्ची जब गांव के ही एक युवक से प्रेम प्रसंग के चलते गर्भवती हो गई और उनके प्रयास के बावजूद युवक के परिवार ने शादी करने से इंकार कर दिया तो उन्होंने इसकी सजा अपने पूरे परिवार को मृत्युदंड के रूप में दी और खुद फरार हो गये। पूर्वांचल के एक जिले में तो जो घटना हुई उसमें बड़ी मुश्किल से एक परिवार उबर पाया। जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी की इकलौती बेटी। इंटर में पढ़ रही थी। वह अपने पापा के सरकारी ड्राइवर से ही प्रेम करने लगी और एक दिन उसके साथ फरार हो गई। कुछ दिनों तक तो जैसे-तैसे मामला छिपाया गया लेकिन बात जब आम होने लगी तो सीएमओ साहब का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया। पति-पत्नी दोनों ने अपने को एक कमरे में कैद कर लिया। भला हो उनके साथियों का जिन्होंने दिनरात उनकी निगरानी की भाग-दौड़ कर बेटी को समझा-बुझा कर घर लाया। जैसे-तैसे स्थितियां सामान्य हुईं। यह तो कुछ उदाहरण हैं जिनके साथ मैं कहीं न कहीं जुड़ा रहा हूं। इस तरह की बहुत सी घटनायें होती हैं जिनकी चर्चा नहीं होती। क्या जब हम आनर किलिंग की बात करते हैं तो इन्हें संज्ञान में नहीं लिया जाना चाहिए। तथाकथित आनर किलिंग  की भेट चढ़ने वाले 80 फीसदी बच्चे इसी वय के होते हैं। परिपक्व होने के बाद किसी को भी अपने जीवन के बारे में फैसला लेने का हक है लेकिन समय के पूर्व कोई निर्णय लेने के दुष्परिणाम को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। और फिर कौन ऐसा मां-बाप या भाई है जो अपनी बेटी-बहन का अहित चाहेगा। बड़े नाजों से पली-बढ़ी बेटी एक वय तक अपना हर निर्णय मां-बाप के परामर्श से करती है और अपने जीवन का सबसे अहम निर्णय लेते समय वह उन्हें नजरअंदाज क्यों करती है। मैं ऐसे दर्जनों मामले जानता हूं जहां बेटियों ने अपने जीवन साथी के बारे में मां-बाप को बताया और सारी परिस्थितियों पर विचार करने के बाद कई लोग अपनी जाति ही नहीं धर्म के बाहर भी जाकर अपनी लाडली की शादी को तैयार हुए।  आनर किलिंग को लेकर सोसेबाजी बंद होनी चाहिए। यह कानून-व्यवस्था का प्रश्न नहीं एक पारिवारिक और सामाजिक मुद्दा है इसका समाधान भी इसी स्तर पर करने की कोशिश होनी चाहिए।

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