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मेरा जुर्म और सजा

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मेरा जुर्म और सजा

-सत्येंद्र कुमार

मैंने बहुत बड़ा गुनाह किया

मेरा गुनाह माफी के काबिल नहीं,

हुक्मरां ने सुना दी है सजा

शुरू हो गई है मेरी प्रताड़ना

मिलने लगी हैं धमकियां

जल्लाद की मानिंद मड़राने लगे हैं

गुंडे मेरे इर्द-गिर्द

वे फटकार रहे हैं कोड़े

तेज कर रहे हैं नश्तर,

मंगा ली हैं कीलें और सलीबें

जिस पर मुझे जीते जी टॉंग देंगे

असीम यातना देंगे आखिरी सांस तक

हुक्मरां हसेंगे, मुस्करायेंगे, ठहाके लगायेंगे

सुनायेंगे मेरा गुनाह

मैंने जुर्रत की थी

कामचोर को कामचोर कहने की,

चोर को चोर कहने की,

बेईमान को बेईमान कहने की

और दलाल को दलाल कहने की

मैंने कोशिश की थी-

सच को सच की तरह बयां करने की।। 

आखिर इस गुनाह की सजा तो

भुगतनी ही होगी,  भुगतनी ही होगी।

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